रविवार, 31 दिसंबर 2017

संस्कृत का अर्थदायी स्वरुप एवं रोगगार के अवसर

सर्वातिप्राचीन गंभीररहस्यपूर्णता से अलंकृत संस्कृत न केवल वेद, पुराणादि ग्रन्थो तक ही                     प्रयोजनपूर्ण है ,अपितु संस्कार के दिव्यालंकार से सुशोभित करती हुई बुद्धि के अगाध क्षेत्र मे  अपनी अलौकिकता सिद्ध करने मे पूर्ण चरितार्थ है । जीवन की शुरुवात जिस रुदनात्मक ध्वनि से होती है उसके मूल मे अदृश्यरूप से परा, पश्यन्ती, मध्यमा, वैखरी विद्यमान रहती है । जिसका वैज्ञानिक स्वरूप संस्कृतेतर अन्य किसी भी वाङ्मय मे उपस्थित नही है ।
                           संस्कृत भाषा मे निबद्ध दर्न (न्याय- वैशैषिकादि) अणु –परमाणु के जटिल सिद्धान्तो क शैली मे हजारो वर्ष पूर्व प्रस्तुत कर आज के वैज्ञानिको को आश्चर्यान्वित कर रही है ।संस्कृत भाषा से इतर इस जगत  कुछ भी नही है ऐसा कहना उचित ही नही अपितु पूर्णतया प्रामाणिक भी है ,जो आज के युग मे प्रथमतः भारत मे एवं विश्व मे स्थापित वैज्ञानिक युग मे प्रायोगिकरूप मे प्रचलित  है । भारतीय इतिहास की पृष्ठभूमि मे संस्कृत भाषा का ह्रास किस प्रकार से हुआ यह भी चिंतन करने का विषय है ।
                   आज के वर्तमान समय मे रोजगार एक मूलभूत आवश्कता का विषय है । प्राचीनकाल मे जिसप्रकार ज्ञान की महत्ता थी ,आज उसीप्रकार रोजगार की महत्ता को चरितार्थ किया जाता है , अतः प्रत्येक क्षेत्र को रोजगार से जोडकर उसे रोजगारपरक बनाया जा रहा है ,एवं इसी के आधार पर आवश्यक मूलभूत सुविधावों का लाभ भी प्राप्त किया जा रहा है ।
                                      आज संस्कृत अध्यन करने पश्चात एक विद्यार्थी अपने अध्ययनीय क्षेत्र से किस प्रकार रोजगार प्राप्त करे ,इस विषय पर हमे विचार करना है । किसी भी युवा को यदि रोजगार पाना है तो उसे खुद को एक नये कौशल से निखारना होगा, एक प्रतिवेदन के अनुसार २०२२ तक ३७ फीसदी रोजगार मे नये कौशलों की आवश्यकता होगी , इसी मे कहा गया है कि २०२२ तक भारत की कामगार आबादी ६०करोड के करीब होगी और इसमे ९ फीसदी यानी करीब ५.५ करोड ऐसे रोजगार मे होंगे, जिनका अभी कोई अस्तित्व ही नही है ।
                          संस्कृत भाषा पर आधारित रोजगार वर्तमान संदर्भ मे किस स्तर पर है , और भविष्य के भावी परिप्रेक्ष्य मे इसे किस प्रकार से प्रभावी बनाया जा सकता है । इस विषय पर  संस्कृत जगत पर  कार्यशालायें आयोजित  की जानी चाहिए, ताकि संस्कृत में भी रोजगारपरक कौसलों का नूतन प्रादुर्भाव हो सके ।आज सम्पूर्ण विश्व मे वैश्वीकरण का सूत्रपात हो चुका है ,अतः हमें संस्कृत को एक नये रूप मे प्रस्तुत करना होगा । हमें आधुनिक दृष्टि से वैदिक विज्ञानो के अनेक पहलुवों को परिष्कृतरूप मे प्रस्तुत करना होगा ,एवं  अपने शास्त्रीय ज्ञान को नवीनता से परिलक्षित करना होगा ।
                                 वर्तमान २१वी सदी वैज्ञानिकता से ओतप्रोत है, आज वैज्ञानिक चिंतन करने के पश्चात ही प्रतपादित नूतन विद्या के समर्थन हेतू पूर्वशोध एवं  प्रमाणों को आधाररूप  मे ग्रहण करता है ।आश्चर्यान्वित तथ्य है  जो आज नवीन विद्या के रूप मे विश्व मे प्रतिष्ठापित  किया जाता है ,वह संस्कृत भाषा मे पूर्व हि विद्यमान है ,चाहे वो विज्ञान के क्षेत्र मे हो चाहे वो आध्यात्म , आयुर्वेद, , साहित्य, इतिहास, इत्यादि  के क्षेत्र मे  हो सर्वत्र संस्कृत भाषा की समरसता प्राप्त होती है ।   
          संस्कृत भाषा मे निहित ज्ञानविज्ञान, चिकित्साविज्ञान, सूचनाविज्ञान, भौतिकविज्ञान, वनस्पतिविज्ञान, संगणकविज्ञान, यान्त्रकीयविज्ञान, भौगोलिक, भूगर्भीय, गणितीय, अन्तरिक्षविज्ञान इत्यादि समस्त क्षेत्रो मे संस्कृत के लिए समान अवसर है , और इन सब क्षेत्रो पर यदि संस्कृताधारित कार्य किये जाये तो १०० फीसदी सफलता प्राप्त की जा सकती है ।
                                                   जिन क्षेत्रो पर वैदेशिक लोग आज कार्य कर रहे है उन समस्त कार्यो को पूर्व मे हि भारतीय संस्कृति मे किया चुका है । वर्तमान मे प्रचलित प्लासटिक सर्जरी, शल्यक्रिया आज से ३०००वर्ष पूर्व ही महान आयुर्वेदाचार्य सुश्रुत जी के द्वरा किया जा चुका है , विमानशास्त्र श्री भरद्वाज ऋषि के द्वारा रचित है जिसके आधार पर सर्वप्रथम महाराष्ट्र के बाबू शिवकर तलपडे जी ने इसका प्रयोग किया और सफल भी रहे, इसके ८वर्ष पश्चात राइट बन्धुवों को विमान बनाने की सफलता मिली ,पहिये का अविष्कार रामायणकाल से प्राप्त है हमें , विद्युत उत्पादन की क्रिया भी हमारे ग्रन्थो मे प्राप्त होती है-
     अगस्तसंहिता मे वर्णित विद्युत उत्पादन प्रक्रिया-
                     
संस्थाप्य मृण्मयं पात्रं ताम्रपत्रं सुसंन्स्कृतम् ।
छादयेत शिखिग्रिवेन चाद्रभिः काष्टपासुभिः ।।
दस्तलोषतो निधात्वः संयोगस्तदस्तयोः ।
संयोगज्जायते तेजो यान्मित्रमिति कथ्यते ।।  [i]
इस प्रकार से हमारे संस्कृत वाङ्मय के प्रत्येक क्षेत्र मे अनेक प्रकार के कौशलों को प्रतिपादित किया गया है जिनका हम समुचित अध्यन करके रोजगार प्राप्त कर सकते है ।
संस्कृत भाषा क्यों पढें ? इसका आधुनिक एवं वैज्ञानिक प्रयोजन -
        भाषा  विज्ञान की दृष्टि से संस्कृत भाषा अत्यन्त गंभीर एवं बाह्याभ्यान्तर उभयात्मक प्रयत्नों के मेल से व्यवस्थित और विशेष ध्वनि वाली है ।
        बुद्धिविलास एवं गणितीय तर्क पूर्णता से युक्त यह भाषा न केवल अनुवाद की दृष्टि से विविध आयामो को स्वयं मे निहित किये हुये है, अपितु व्याकरण के गंभीर नियमो से अलंकृत होते हुए भी अत्यन्त सरस एवं सरल है ।
         वाक्कला एवं कर्णप्रिय मधुरता शब्द अर्थ  उभयात्मक अलंकारिता विषय वस्तु प्रतिपादन मे नित्य नवीन चिंतन एवं  भावात्मक विविधता संस्कृत भाषा मे स्वभाविक है ।
        बाल्यावस्था या कौमार्यावस्था मे बच्चे अधिक सहज ही नवीनता की तरफ आकृष्ट होते है ।  आज के भौतिक युग मे प्रायः चिंतन गंभीरता कम हि देखने को मिलती है । बच्चे संस्कृत भाषा के द्वारा सहज प्रिय नवीनत्व तो पाते ही है साथ हि साथ चिंतन की गंभीरता एवं संस्कार की अहेतुक शालीनता से युक्त हो जाते है । जो उनके पूर्ण जीवन मे दिव्यलौकिकता का हेतू बनता है । साथ साथ उनके संपर्क मे आये सभी जीवो को भी सदउद्देशात्मक क्रान्तिपूर्ण भावो से भर देता है ।
        संस्कृत विद्य़ा साक्षात् अर्थदायिनी है, यह न केवल द्रव्य हि दे सकती है ,अपितु  नवीन प्रयोगात्मक- वैज्ञानिक अनुसंधानों का पर्याय भी बन सकती है ।
समाज के पूर्वाग्रह के कारण आमतौर पर यह माना जात है कि संस्कृत भाषा का अध्ययन करना के पश्चात रोजगार की बहुत कम हि संभावनाए है , इस प्रकार की भावना तथ्यहीन होने के साथ साथ समाज की अपरिपक्वता का भी उदाहरण है । संस्कृत भाषा एवं विषय के अध्ययन के पश्चात रोजगार के अनेक अवसर उपलब्ध है , जिनके बारे मे विद्यार्थी को एवं अभिभावकों को जानकारी होना अतिआवश्यक है , तभी संस्कृत के छात्र संस्कृत भाषा के अध्ययन के ओर अभिमुख होंगे ।
                     संस्कृत अध्ययन करने के पश्चात हम किन किन क्षेत्रो मे रोजगार प्राप्त कर सकते है इस विषय पर विचार करेगें । इसे हम दो प्रकार से अलग कर सकते है – १ सर्वकारी क्षेत्र एवं २- निजी एवं सामाजिक क्षेत्र ।
सरकारी क्षेत्र रोजगार के अवसर-
१.      भारतीय प्रशासनिक सेवा
२.      प्राथमिक अध्यापक
३.      प्रशिक्षित स्नातक अध्यपक
४.      प्रवक्ता
५.      सहायक व्याख्याता
६.      अनुसंधान सहायक
७.      सेना मे धर्मगुरू
८.      अनुवादक
९.      योगशिक्षक
१०.  पत्रकार
११.  सम्पादक
१२.  लिपिक
१३.  अन्य सरकारी सेवायें
निजी एवं सामाजिक क्षेत्र
१.      लेखक
२.      ज्योतिषी
३.      वास्तु सलाहकार
४.      पुरोहित
५.      कथा प्रवाचक
६.      शिक्षाशास्त्री
७.      दार्शनिक
८.      नेता
९.      अन्वेषक
१०.  उद्योगपति
इस प्रकार से हम देखते है संस्कृत भाषा पर रोजगार के अवसर अन्य क्षेत्रो की अपेक्षा काफी अधिक संख्या मे उपलब्ध है , अब हम संस्कृत वाङ्मय मे वर्णित रोजगार के विषयों पर विचार करेगें और प्राप्त करेगें की सर्वाधिक क्षमतावों से सम्पन्न एवं सुदृढ है हमारा संस्कृत वाङ्मय , संसाधनों की कमी एवं प्रशासनिक उपेक्षावों का कारण अवश्य ही इसमे कमी आई है परन्तु हमारा वाङ्मय आज भी अपनी पूर्णता से अलंकृत  है । संस्कृत वाङ्मय के विविध आयाम जिनपर रोजगार परक अध्ययन किया जाता है  , और समुचित रोजगार भी प्राप्त किया जा सकता है -
व्याकरण-  आज विविध नित्य प्रयोग्य वस्तुवों के लिए नये संस्कृत शब्दों की आवश्कता है । इस क्षेत्र मे एक  वैयाकरण ही इसकी आपूर्ती कर सकता है नवीन शब्द निर्माणकरिता वैयाकरणों मे होती है । भाषा विज्ञान की दृष्टि से भी संस्कृत व्याकरण अत्यन्त सम्पन्न है , उदाहरण के लिए भर्तृहरि जी का भाषादर्शन-
                  विच्छेदग्रहणेथार्नां प्रतिभान्यैव जायते ।
                  वाक्यार्थ इति तामाहुः पदर्थैः उपपादिताम् ।।[ii]

किसी वाक्य के शब्दो का अर्थ अलग अलग देखने पर एक दूसरे ही प्रकार की अंर्तदृष्टि मिलती है । शब्दो के अर्थ विश्लेषण से उत्पन्न उस दृष्टि को वाक्य का अर्थ कहा जाता है । व्याकरण के क्षेत्र मे भी इसके माध्यम से नवाचार करके रोजगार प्राप्त किया जा सकता है ।
साहित्य-  शोधकर्ताओं को प्राचीन कवियों की शैली का अवलोकन कर आधुनिक परिप्रेक्ष्य को देखते हुए स्वमूलकृत रचनाओं के लिए प्रेरित होना चाहिए । कवि या लेखक वर्तमान एवं भविष्य की सत्यता को प्रस्तुत कर सकता है । अतः इस क्षेत्र मे भी विद्यार्थी साहित्यिक विधावों का अध्ययन कर सम्मानित रोजगार प्राप्त कर सकता है ।
ज्योतिष- आधुनिक काल के अनुसार शास्त्रीय फलित वास्तु आदि को पुनः व्यवस्थित करे तथा ग्रह नक्षत्रो के अनुसंधान के लिए प्रयत्नशील अनुसंधानकर्ताओ को नासा आदि क्षेत्रो से जोडकर ज्योतिषशास्त्र के अन्तर्गत अनेक क्षेत्रो पर रोजगार प्राप्त किये जा सकते है कुछ प्रमुख विभाग –
Ø  प्रायोगिकपञ्चाङ्गगणित
Ø  खगोलविज्ञान
Ø  वास्तुशास्त्र
Ø  आजीविकाज्योतिष
Ø  ऋतुविज्ञान
Ø  प्राकृतिकापदविज्ञान
Ø  सामुद्रिकशास्त्र
Ø  चिकित्साज्योतिष
इन सभी क्षेत्रो पर समुचित रोजगार प्राप्त किया जा सकता है ।
वेद- वेद सम्पूर्ण संस्कृत जगत के प्राण माने जाते है इसे  जीवन्त बनाए रखने के लिए इसमे वर्णित यज्ञों अनुष्ठानों को जो सम्भव हो सके उसे प्रायोगिकता दे तथा छात्रो को जटामालादि प्रपाठो से पुनः जोडे , वेद अध्ययन करके हम यथोचित सम्मानित रोजगार प्राप्त कर सकते है ।
तंत्र- इसमे वर्णित सत्वप्रधान लोककल्याण पूर्ण रीतीयों को पुनः प्रायोगिकता दे, शोधकर्ताओ को तपश्चर्या मन्त्रजप विविध यंत्र निर्माण एवं जागृत करने की विधि के लिए कार्य दे , नवीनता एवं अनुभवजन्य ज्ञान  को स्विकारे , तन्त्रागम दार्शनिक विचारो को प्रस्तुत कर आप इस क्षेत्र मे भी उचित रोजगार प्राप्त कर सकते है ।
योग- अतिमहत्वपूर्ण संस्कृत वाङ्मय का क्षेत्र इसके विविध आयामो पर पूर्ण प्रयोगात्मक अगर दृष्टि डाले तो प्राप्त होगा , मानवजीवन के लिए अत्यन्त आवश्यक है । आज सम्पूर्ण विश्व इस भौतिक संसार से ऊबकर मन की शान्ति एवं स्वास्थय के लिए योग का सहारा लेता ,इसके शोधक्षेत्र को पूर्ण प्रयोग से  जोडे तो दिव्यदेह से भी आगे है । भारत इसका जनकप्रदेश है अतः सम्पूर्ण संसार भारत की ओर हि अभिमुख होता नजर आता है । वर्तमान सरकार के प्रयास से २२जून को अंर्तराष्ट्रीय योग दिवस  भी मनाया जाता है । छात्र योग विषय से स्नातक करके स्वयं का योगकेन्द्र खोलकर निजी एवं सरकारी रोजगार प्राप्त कर सकते है । वर्तमान सभी प्रदेशो पर योगशिक्षकों को अनिवार्यरूप से रोजगार प्रदान किया जा रहा है ।
आयुर्वेद- संस्कृत वाङ्मय मे वर्णित आयुर्वेद अत्यन्त समाजोपयोगी विषय है , इस विषय पर बी ए एम एस उपाधि प्राप्त करके , सम्मानित रोजगार प्राप्त कर सकते है । संस्कृत वाङ्मय मे  अथर्ववेद एवं रावणसंहिता का प्रतिपाद्य विषय आयुर्वेद ही है , इस क्षेत्र मे रोजगार के पर्याप्त अवसर है ।
रसायन- संस्कृत वाङ्मय मे वर्णित रसायन विषयक ग्रन्थ रसेन्द्रमंगल, रसरत्नाकर, पारदतंत्रविज्ञान  इत्यादि का अध्ययन करके धातुशुद्धि इत्यादि कार्य करके निजी क्षेत्र मे रोजगार उत्पन्न किया जा सकता है । सरकार को चाहिए की इन विषयो पर छोटे छोटे वार्षिक प्रशिक्षण देकर नए रोजगार कौशल प्रदान कर संस्कृत क्षेत्र को बढावा दे ।
पुराण- जीवन कला से शुरू यह पुराणादि भी प्रायोगिक महत्वों से भरा हुआ है ,इसमे वर्णित स्थलो का वर्तमान भौगोलिक स्वरुप गुफाऐ ,कन्दरायें इत्यादि का अध्ययन भी महत्वपूर्ण हो सकता है इसका अध्ययन करके छात्र रोजगार प्राप्त कर सकता है ।
LANGUAGE WITH MANUCRIPTOLOGY-  प्राचीन पाण्डुलिपियों का भाषान्तरीकरण करने के लिए पालि ,प्रकृत, शारदा, ग्रन्थ आदि लिपियो का अध्ययन करके इसमे भी रोजगार प्राप्त किया जा सकता है ।
संस्कृत वाङ्मय मे वर्णित प्रत्येक क्षेत्र  से हम समुचित रोजगार प्राप्त कर सकते है अगर हमे उसका  ज्ञान उच्चस्तरीय संसाधनों से  प्राप्त हो । आज भी संस्कृत को उचित संसाधनो की अत्यन्त आवश्यकता है ।विश्वभर के ४० देशो के २५४ विश्वविद्यालयों मे संस्कृत का अध्यापन किया जाता है । भारत मे १३ संस्कृत विश्वविद्यालय संचालित किए जाते है ।लंडन और आयरलैण्ड के अनेक विद्यालयों मे संस्कृत का अध्यापन अनिवार्यरूप से किया जाता है , भारत के बाद सर्वाधिक जर्मनी मे संस्कृत कालेज है , आपको जानकर आश्चर्य होगा जर्मनी के१४ बडे विश्वविद्यालयों पर संस्कृत विभाग उपलब्ध है । यूएनओ के अनुसार विश्व की ९७फीसदी भाषायें संस्कृत मे प्रभावित है , संस्कृत के शब्दकोष मे सर्वाधिक १०२ अरब ७८करोड ५०लाख  शब्द है ,संगणक मे प्रयुक्त Algorithms संस्क़त मे बने हुए है । फोर्ब्स पत्रिका के अनुसार संस्क़त को संगणक साफ्टवेयर के लिए सबसे बेहतर भाषा माना जाता है । नासा के अनुसार संस्कृत धरती पर बोली जानी वाली सबसे स्पष्ट भाषा है ,नासा के वैज्ञानिकों द्वारा बनाये जा रहे छठे एवं सातवें पीढी के संगणक संस्कृत भाषा पर आधारित होगें । संस्कृत अत्यन्त हि सुदृढ भाषा के रुप मे विश्वविख्यात है ,और रोजगार के सर्वाधिक प्रयत्न इसपर किए जा सकते है । अतः संस्कृत पढकर सिर्फ कर्मकाण्ड ही किया जा सकता ऐसा कहना तथ्यहीन एवं मूर्खतापूर्ण है , अन्तर्राष्ट्रिय स्तर पर बहुत सारे विषय प्रस्तुत किए गये है जिनमे कुछ प्रस्तुत है-
SANSKRIT & SCIENCE
Ø  Environment Science in  Chandogya Upnishd.
Ø  Water Resources & Management in Vastushastra.
Ø  Formulizing The Astadhyayi.
Ø  Building Construction – Concept of Environment in Manusyalaya Chandrika.
Ø  Indian Jyotisa Gleaned through the Chinese Buddhist Canon.
Ø  Architecture in Kautilya Arthasstra  .
Ø  Contribution of vedanto to Modern Physics.
Ø  On Lexical Borrowing from Sanskrit in the modern Scientific Discourse.
Ø  Metallurgy in Ancient Indian Sanskrit literature .
Ø  Sphoto Doctrine & Physics of sound .
Ø  Preventive Medicine in the Charak samhita .
SANSKRITA IN TECHNOLOGY WORLD
Ø  STRATEGIES FOR SEMANTIC REPRESENTATION KARMA KARAK.
Ø  FEATURES OF SVARITA IN THE LIGHT OF SPEECH TOOLS.
Ø  THEORIES OF ANAPHORA RESOLUTION IN TRADITIONAL SANSKRIT TEXT.
Ø  TRANSFER GRAMMER FOR SANSKRIT HINDI MACHINE TRANSTATION.
संस्कृत भाषा अर्थदायी होने के साथ ही मोक्षदायिनी भी है , इसीलिए कहा गया है-
मातेव  रक्षति पितेव हिते नियुक्ते कान्तेव चापि रमयत्यपनीय  खेदम् ।
लक्ष्मीं तनोति वितनोति च दिक्षु कीर्तिं किं किं साधयति कल्पलतेव विद्या ।।
संस्कृत भाषा कल्पवृक्ष के समान है , सबकुछ प्रदान करने मे समर्थ है जो भी आपका अभीष्ट होगा । अतः संस्कृत वाङ्मय के प्रत्येक क्षेत्र से रोजगार प्राप्त कर सकते है  ।
                                                    ।। धन्यवाद ।।




[i]  अगस्तसंहिता

[ii] वाक्यपदीयम् २.१४३

समासशक्तिविमर्शः यस्मिन् समुदाये पदद्वयं   वा पदत्रयं   वा परस्परं समस्यते स   सम ु दायः   समासः    इति । प्राक्कडारा समासः [i] - समासस...