‘ या
ऋक् तत् साम ’ (छा.उ.१-३-४)
‘ ऋचि
अध्यूढं साम ’ (छा.उ.
१-६-१)
‘ सा च
अमश्चेति तत् साम्नः सामत्वम् ’ (बृ.उ. १-३-२२)
सामवेद की शाखाओं के
विषय में महर्षि पतञ्जजली अपने ग्रन्थ महाभाष्य के प्रथम
आह्निक में कहा है- सहस्त्रर्त्मा सामवेदः
सामतर्पण में केवल १३ सामवेदी आचार्यों का उल्लेख प्राप्त होता है
जो निम्न है –
१- राणायन
२- शाट्यमुग्रय
३- व्यास
४- भागुरि
५- औलुण्डि
६- गौग्गुलवि
७-
भानुमानौयमन्यव
८- काराटि
९- मशक गार्ग्य
१०-
वार्षगाव्य
११-
कुथुम
१२-
शलिहोत्र
१३-
जैमिनि
सामवेद की कुल १३ शाखाएं है सम्प्रति सामवेद की ३ शाखाएं ही प्राप्त होती
है –
१- राणायनीय
२- कौथुमीय
३- जैमिनीय (तवल्कार)
संक्षिप्त परिचय- इसका प्रमुख प्रतिपाद्य विषय स्तुतिस्तोम है ,
इसका ऋत्विक- उद्गाता कहलाता है । इसके आचार्य
जैमिनी माने जाते है । सामवेद के प्रमुख देवता सूर्य माने जाते है । सामवेद
की सबसे लोकप्रिय शाखा कौथुमीय शाखा मानी जाती है । सामवेद दो भागो में विभक्त है-
(क) पूर्वाचिक
(ख) उत्तरार्चिक
मंत्र संख्या- कुल
मंत्र संख्या १८७५ है, जिसमें ऋग्वेद
के १७७१ मंत्र है ,इस प्रकार केवल १०४
मंत्र हि सामवेद के है । ऋग्वेद के
१७७१ मंत्रो में २६७ पुनरुक्त है तथा सामवेद के
१०४ मंत्रो में से ५ पुनरुक्त है । इस प्रकार से ऋग्वेद
में सर्वथा अप्राप्त मंत्र ९९ है ।
पूर्वार्चिक- इसमे कुल ४ काण्ड
है-
(क) आग्नेय
(ख) ऐन्द्र
(ग) पावमान
(घ) आरण्यकाण्ड और महानाम्नी आर्चिक
इसमे कुल ६
अध्याय ६५० मंत्र है ।
उत्तरार्चिक- इसमें कुल
२१ अअध्याय है एवं ९ प्रपाठक है
कुल १२२५ मंत्र है । उत्तरार्चिक में कुल ४०० सूक्त है , जिनमें २८७ सूक्तों में ३-३ मंत्र है
६६ सूक्तों में २-२ मंत्र है , तथा
शेष सूक्तों में १या २ मंत्र है ।
विशेष- सामवेद में
सर्वाधिक मंत्र ऋग्वेद के ८ एवं ९ मण्डल से लिए गये है । नवम मण्डल से ६४५
और अष्टम मण्डल से ४५० मंत्र लिए गये है
। इसकें अतिरिक्त भी ऋग्वेद के
शेष मण्डलो से भी मंत्र
लिए गये है , जिसमें प्रथम मण्डल
से २३७ मंत्र दशम मण्डल से ११० मंत्र
प्रमुख है ।
सामवेद का प्रमुख प्रतिपाद्य
विषय- इसमें मुख्यतः सोमयाग से
सम्बद्ध मंत्रो का संकलन है । पूर्वार्चिक में अग्नि, इन्द्र,और पावमान एवं सोम से सम्बद्ध
मंत्र दिये गये है । उत्तरार्चिक के द्विक, त्रिक्, चतुष्क आदि लयों का
प्रयोग करना होता है ।
सामवेद में सोम, सोमरस,
सोमगान, एवं सोमयाग का विशेष महत्व
है । आध्यात्मिक दृष्टि से सोम ब्रह्म या शिव तत्व माना जाता है ।
शिव त्रिपाठी
रविवासरः २९/०४/२०१८
क्रमशः