रविवार, 29 अप्रैल 2018

सामवेद-परिचय (खण्ड-तृतीय)



या ऋक्  तत् साम   (छा.उ.१-३-४)

ऋचि अध्यूढं साम (छा.उ. १-६-१)

सा च अमश्चेति तत् साम्नः  सामत्वम् (बृ.उ. १-३-२२)

सामवेद की  शाखाओं के  विषय  में  महर्षि पतञ्जजली अपने ग्रन्थ महाभाष्य के प्रथम आह्निक में कहा है- सहस्त्रर्त्मा सामवेदः
सामतर्पण में केवल  १३ सामवेदी आचार्यों का उल्लेख प्राप्त होता है जो निम्न है –

१-   राणायन

२-   शाट्यमुग्रय

३-   व्यास

४-  भागुरि

५-  औलुण्डि

६-  गौग्गुलवि

७-                       भानुमानौयमन्यव

८-   काराटि

९-   मशक गार्ग्य

१०-                  वार्षगाव्य

११-                   कुथुम

१२-                   शलिहोत्र


१३-                   जैमिनि

सामवेद की कुल १३ शाखाएं है सम्प्रति सामवेद की ३ शाखाएं ही प्राप्त होती है –
१-   राणायनीय

२-   कौथुमीय

३-   जैमिनीय  (तवल्कार)

संक्षिप्त परिचय-    इसका प्रमुख प्रतिपाद्य विषय स्तुतिस्तोम है , इसका ऋत्विक- उद्गाता कहलाता है । इसके आचार्य  जैमिनी माने जाते है । सामवेद के प्रमुख देवता सूर्य माने जाते है । सामवेद की सबसे  लोकप्रिय  शाखा कौथुमीय शाखा मानी जाती है । सामवेद  दो भागो में विभक्त है-    
                   (क) पूर्वाचिक

                   (ख)  उत्तरार्चिक

मंत्र संख्या-  कुल मंत्र संख्या १८७५ है, जिसमें ऋग्वेद के  १७७१ मंत्र है ,इस प्रकार केवल १०४ मंत्र हि  सामवेद के है ।  ऋग्वेद के  १७७१ मंत्रो  में  २६७ पुनरुक्त है  तथा सामवेद के  १०४  मंत्रो में से  ५ पुनरुक्त है । इस प्रकार से  ऋग्वेद  में  सर्वथा  अप्राप्त मंत्र ९९ है ।

पूर्वार्चिक-  इसमे कुल ४ काण्ड है-

                                                      (क) आग्नेय

                                                      (ख) ऐन्द्र

                                                       (ग) पावमान

                                                     (घ) आरण्यकाण्ड और महानाम्नी आर्चिक
  इसमे कुल ६  अध्याय   ६५० मंत्र है ।

उत्तरार्चिक-   इसमें कुल  २१ अअध्याय है एवं ९ प्रपाठक है  कुल  १२२५ मंत्र है ।  उत्तरार्चिक में कुल  ४०० सूक्त है , जिनमें  २८७ सूक्तों में  ३-३ मंत्र है  ६६ सूक्तों में  २-२ मंत्र है , तथा शेष सूक्तों में  १या २ मंत्र है ।

विशेष-  सामवेद में सर्वाधिक मंत्र  ऋग्वेद के ८ एवं ९  मण्डल से लिए गये है ।  नवम मण्डल  से  ६४५ और  अष्टम मण्डल से ४५० मंत्र लिए गये है ।  इसकें अतिरिक्त भी  ऋग्वेद के  शेष मण्डलो  से भी  मंत्र  लिए गये है , जिसमें  प्रथम मण्डल से  २३७ मंत्र दशम मण्डल से  ११० मंत्र  प्रमुख है ।


सामवेद का प्रमुख प्रतिपाद्य विषय-   इसमें मुख्यतः सोमयाग से  सम्बद्ध मंत्रो  का संकलन है ।  पूर्वार्चिक में   अग्नि, इन्द्र,और पावमान एवं  सोम से   सम्बद्ध मंत्र   दिये गये है ।  उत्तरार्चिक के  द्विक, त्रिक्, चतुष्क  आदि लयों  का  प्रयोग करना होता है । 
                                                                                                       सामवेद  में  सोम, सोमरस,  सोमगान, एवं सोमयाग का विशेष  महत्व है ।  आध्यात्मिक दृष्टि से  सोम ब्रह्म या शिव तत्व माना जाता है ।



                                                                                            शिव त्रिपाठी
                                                                                  रविवासरः २९/०४/२०१८
                                                                                                          क्रमशः


  


                            

शनिवार, 28 अप्रैल 2018

यजुर्वेद- परिचय (खण्ड-द्वितीय)


 कण्व-संहिता-      सम्पूर्ण कण्व संहिता में ४० अध्याय कुल २०८९ मंत्रो का संकलन किया गया है ,  वजसनेयी संहिता से १११ मंत्र अधिक है । इसमें ३२८ अनुवाक है ।  इसका सर्वाधिक प्रचार प्रसार उत्तर भारत (महाराष्ट्र) में है ।


कृष्ण यजुर्वेद (ब्रह्म सम्प्रदाय)

कृष्ण-यजुर्वेद की कुल ८६ शाखाएं मानी जाती है । जिसमे ४ उपलब्ध है-

१-   तैत्तिरीय

२-  मैत्रायणी

३-  कठ

४- कपिष्ठल

तैत्तीय संहिता-  यह कृष्ण-यजुर्वेद की सबसे प्रमुख शाखा मानी जाती है, यह काण्डों में विभक्त है । इसमें कुल ७ काण्ड है ४४ प्रपाठक और ६३१ अनुवाक है । यह  शाखा वेदों में सर्वाङ्गपूर्ण शाखा है जिसमें  इसके ब्रह्मण, आरण्यक, उपनिषद, गृह, श्रौत, धर्म, शुल्व इत्यादि सभी प्राप्त होते है ।
        इसमें यागुष्ठानों का वर्णन है , इसका अधिक प्रचार  महाराष्ट्र ,एवम् आन्ध्रप्रदेश में अधिक है ।

मैत्रायणी संहिता- इस संहिता में  4 काण्ड  ५४ प्रपाठक  २१४४ मंत्र है । मुख्यरूप से इसमें ऋग्वेद के १७०१ मंत्र लिए गये है ,जिसमें  सर्वाधिक प्रथम, षष्ठम्  एवं दशम् के मंत्रो को संकलित किया गया है ।

काठक संहिता-  कृष्ण यजुर्वेद की इस शाखा में  ४०  स्थानक   ८४३ अनुवाक है । इसमें मंत्रो की संख्या ३०९१ है  । मंत्र ब्राह्मणो के सम्मलित शाखा में कुल मंत्रो की संख्या १८ हजार है , इसमें  भी  यागादि का ही वर्णन प्राप्त होता है ।

कपिष्ठल संहिता-   यह शाखा अधूरी ही प्राप्त हुई है , जिसमें ६ अष्टकों में ४८ अध्याय है । इसकें मंत्रो पर भी ऋग्वेद का ही अधिक प्रभाव प्राप्त होता है ।


प्रतिशाख्य ग्रन्थ-

कृष्ण-यजुर्वेद-

१-  तैत्तिरीय  प्रतिशाख्य

शुक्ल-यजुर्वेद-

१-  वाजसनेयी प्रतिशाख्य (कात्यायन कृत)

शिक्षा- ग्रन्थ-

कृष्ण-यजुर्वेद-

१-  व्यास शिक्षा  

२-  वाशिष्ठी शिक्षा

३-  माण्डव्य शिक्षा

४- भारद्वाज शिक्षा

शुक्ल-यजुर्वेद-

१-  याग्यवल्क्य शिक्षा

२-  माध्यान्दिन  शिक्षा

कल्प सूत्र

कृष्ण-यजुर्वेद-

(क)      श्रौत सूत्र-

१-  बौधायन

२-  आपस्तम्ब

३-  सत्याषाण

४- वैखानस

५- भारद्वाज

६- कठ

७-         वाधूल

८-  वाराह

९-  मानव

१०-    मैत्री

(ख)     गृह सूत्र-

१-  कठ

२-  आपस्तम्ब

३-  बौधायन

४- वैखानस

५- भारद्वाज

६- वाधूल

(ग)         धर्म सूत्र-

१-  विष्णु

२-  वशिष्ठ

३-  आपस्तन्ब

४- बौधायन

५- हिरण्यकेशी

६- वैखानस
         
(घ)        शुल्व सूत्र-

१-  मानव

२-  बौधायन

३-  आपस्तम्ब

४- मैत्रायणी

५- वाराह

६- वाधूल

शुक्ल-यजुर्वेद-

(क)      श्रौत सूत्र-

१-  कात्यायन या पारस्कर

(ख)     गृह सूत्र-

१-  कात्यायन या पारस्कर

(ग)         धर्म सूत्र

१.    हारीत

२.   शङ्क

(घ)        शुल्व सूत्र-

१.   कात्यायन


ब्रह्मण-ग्रन्थ
शुक्ल-यजुर्वेद-   शतपथ ब्रह्मण शुक्ल यजुर्वेद का एकमात्र ब्राह्मण ग्रन्थ है-  इसके दो पाठ प्राप्त होते है-
(क)      माध्यन्दिनशाखीय इसमें  १४काण्ड १०० अध्याय है ।

(ख)     कण्वशाखीय इसमें  १७काण्ड १०४ अध्याय है ।
  इसके रचनाकार याज्ञवल्क्य ऋषि माने जाते है ।

प्रमुख प्रतिपाद्य विषय-  इसमें प्रारम्भिक ९ काण्डो में शुक्ल यजुर्वेद के  १८अध्यायों  की  व्याख्या की गई है ।दशपौर्णमास, अग्निहोत्र, चातुर्मास्य, वाजपेय,  राजसूय, अग्निरहस्य, अश्वमेघ,  पुरुषमेघ, आदि का विस्तृत वर्णन प्राप्त होता है ।
                                   पुरुरवा-उर्वशी, दुष्यन्त पुत्र भरत, मत्स्य जलप्लावन, तथा मनु की कथाएं प्राप्त होती है । इसमे  सर्वप्रथम साख्य आचार्य आसुरि तथा पाण्डय राजा जनमेजय का उल्लेख है । बौद्ध साहित्य में  प्राप्त पारिभाषिक शब्द  अर्हत श्रमण प्रतिबुद्धि  का सर्वप्रथम  प्रयोग इसी में प्राप्त होता है ।

विशेष-  शुक्ल-यजुर्वेद का वस्तुतः कोई आरण्यक ग्रन्थ नही है , शतपथ ब्राह्मण की माध्यन्दिन एवं कण्व दोनों शाखाओं के अंतिम ६ अध्यायों को  वृहदारण्यक उपनिषद् कहा जाता है ।

कृष्ण-यजुर्वेद -तैत्तिरीय ब्राह्मण  कुल ३ काण्डो में विभक्त  प्रथम में  अग्न्याधान, वाजपेय, सोम,  राजसूय,  आदि का वर्णन , द्वितीय में सौत्रामणि, वृहस्पति आदि का वर्णन , तृतीय अध्याय में  नक्षत्रेष्टि का मुख्यरुप सें वर्णन प्राप्त होता है ।  

विशेष-  इसके अन्य शाखाओं के ब्राह्मण अप्राप्त है ।


आरण्यक-ग्रन्थ
(क)      तैत्तिरीय आरण्यक   (ख) मैत्रायणी आरण्यक

तैत्तिरीय आरण्यक-   यह तैत्तिराय शाखा का आरण्यक ग्रन्थ है । इसमें कुल १० परिच्छेद या प्रपाठक है । इसमें  अग्नि की  उपासना  , इष्टका चयन, स्वाध्याय, पञ्चमहायज्ञ, अभिचार मंत्र, तथा पितृमेघ आदि का वर्णन  प्राप्त होता है । इसी  में  कुरुक्षेत्र, खाण्डव, पांञ्चाल , आदि  भौगोलिक नामों का उल्लेख प्राप्त होता है ।
विशेष-   इसके १० प्रपाठक को नारायणीय उपनिषद् कहा जाता है ।
मैत्रायणीय आरण्यक-   इस आरण्यक में कुल ७ प्रपाठक है एवं  आरण्यक  एवं  उपनिषद् के अंश सम्मलित है ।
विशेष-  (क)  इशोपनिषद्, वृहदारण्यकोपनिषद् आदि १९ उपनिषद्  शुक्ल यजुर्वेद के माने जाते है ।
(ख)     कृष्ण-यजुरवेद के कठ, तैत्तिरीय, श्वेताश्वर, कैवल्य, आदि ३२ उपनिषद् प्राप्त होते है ।


वेद परिचय के क्रम में आज द्वितीय खण्ड समाप्त होता है ।

                                                                                                शिव त्रिपाठी

                                                                                        शनिवासरः २८/०४/१८

                                                                                                                     क्रमशः
                                                                                                                                                                                                       


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