संस्कृत अध्ययन का
वैश्विक दृष्टिकोण
देववाणी संस्कृत भारत की ही नही अपितु विश्व की आत्मभूत
वैज्ञानिक भाषा के रुप में लब्धप्रतिष्ठित है । आज जहाँ भारत की युवा पीढी
पाश्चात्य संस्कृतियों को अपनाकर अपने
ऋषियों, मनीषियों, पूर्वजों द्वारा प्राप्त ज्ञननिधि, मूल्यनिधि, संस्कृति, और
सभ्यता को त्यागकर गर्वान्वित हो रहे हैं, वही
पाश्चात्य युवा भारतीय संस्कृत संस्कृति मे निहित ज्ञानमीमांसा की वैज्ञानिकता में नवनवोन्मेष
ज्ञान का अन्वेषण कर अपना और अपने देश का मान बढा रहे हैं।
जहाँ एक ओर भारत में नवोदय विद्यालय , केन्द्रीय विद्यालय, निजि विद्यालयों
में संस्कृत को बन्द एवं वैकल्पिक किया जा रहा है वही जर्मनी अमेरिका जैसे
प्रतिष्ठित देशों में संस्कृत प्राथमिक स्तर से ही अनिवार्य रुप में पढाई जा रही
है । भारत में परम्परागतरुप से संस्कृत के १४ विश्वविद्यालय संचालित किए जा रहे
हैं एवं भारत के विभिन्न कोणों में
अनेक संस्कत के उच्चस्तरीय शोधसंस्थान भी
प्रचलित है, इन सभी सुविधावों के बाद भी संस्कृत भाषा कि स्थिति वो नही है ,जो कि
विश्व के अग्रणी देशों में देखी जा रही है ।
जिस संस्कृत
भाषा की महत्ता वैज्ञानिकता से भारतीय वैज्ञानिक कोसों दूर है, वही नासा के अनुसंधानकर्ता रिक ब्रिक्स का संस्कृत के
प्रति निम्नलिखित वक्तव्य है-
‘’ Nasa the most advanced research centre in world for
cutting edge technology has discovered
the Sanskrit , the world ‘s oldest spiritual language is the only unambiguous
spoken language , a further implication of this discovery is that the age old
dichotomy between religion and sciences
is an entirely unjustified
one ‘’
Posted
August १८, २००६
(शिवब्रह्म नारायण प्रताप)
शोधछात्र रा.सं.सं भोपाल परिसर भोपाल
सं.सू. ७००७६७३६२७ / ७८६०२६४८७८
मेल. tripathishivabrahm@gmail.com
आपका हार्दिक अभिनंदन है---- जयतु संस्कृतं जयतु भारतम्