बुधवार, 2 मई 2018

सामवेद-परिचय(तृतीय-खण्ड)


                  
                                                 

वंश-ब्रह्मण-  इस ब्रह्मण ग्रन्थ में  सामवेदीय गुरुओं के वंश परम्परा  का वर्णन है । यह तीन खण्डों में विभक्त है ।

उपनिषद् ब्रह्मण-  यह ब्रह्मण दो भागों में विभक्त है ,कुल प्रपाठकों की संख्या १० है ,प्रथम भाग में  २ प्रापाठक है तथा २ भाग में ८ प्रपाठक है । द्वितीय भाग को छान्दोग्योपनिषद्  कहते है ।

तवल्कार या जैमिनीय ब्रह्मण- यह जैमिनीय शाखा का ब्रह्मण ग्रन्थ है । इसमें कुल ५ अध्याय है ,प्रथम,द्वितीय, तृतीय अध्याय में यागानुष्ठानों का  वर्णन है । चतुर्थ अध्याय में उपनिषद् ब्रह्मण है , तथा पञ्चम अध्याय में आर्षोय ब्रह्मण है ।

सामवेदीय- आरण्यक ग्रन्थ

सामवेद में कुल दो  आरण्यक ग्रन्थ प्राप्त होते है-

१-  तवल्कार  या जैमिनीय आरण्यक

२-  छान्दोग्य आरण्यक

तवल्कार  या जैमिनीय आरण्यक-  यह जैमिनीय शाखा का आरण्यक ग्रन्थ है । यहा तलव का अर्थ संगीत विद्या से है । इसमें कुल  ४ अध्याय है जो  अनुवाकों में विभक्त है , इसके चतुर्थ अध्याय के  दशम अनुवाक को केनोपनिषद्   कहते है ।

छान्दोग्य आरण्यक-  यह ताण्डय ब्राह्मण से सम्बद्ध आरण्यक है ।  इसको  सत्यब्रत सामश्री जी ने  सामवेद आरण्यक संहिता के नाम से प्रकाशित किया है ।

सामवेदीय उपनिषद् ग्रन्थ

छान्दोग्य उपनिषद्-   यह तवल्कार शाखा से सम्बद्ध उपनिषद् है , इसमें कुल ८ अध्याय है । अध्याय विभक्त है खण्डो १५४ में  यह पूर्णतया गद्यात्मक ग्रन्थ है ।

प्रतिपाद्य विषय-   प्रथम अध्याय में  साम एवं उद्गीथ के महत्व के बारे में बताया गया है ।
द्वितीय अध्याय में  ओम तथा  साम के भेद वर्णित है । साम को अहंकार कहा गया है ।
तृतीय अध्याय में  ब्रह्म के व्यक्त स्वरुप का वर्णन है । तथा सूर्योपासना का वर्णन है । अण्ड से सूर्योत्पत्ति का वर्णन है ।
चतुर्थ अध्याय में   सत्यकाम जाबालि तथा  रैवत आख्यान का वर्णन है ।
पञ्चम अध्य़ाय में  बृहदारण्यक की कथाओं का वर्णन है  । तथा इन्द्रियों की श्रेष्ठता का वर्णन प्राप्त होता है । श्वेतकेतू,आरूणेय एवं प्रहवण जैबलि के संवाद  वर्णन तथा  ६दार्शनिकों के  आत्मविषयक चिंतन  का चित्रण किया गया है ।
षष्ठ अध्याय आरुणि ब्रह्मविद्या के उपदेश  का वर्णन  है । तथा तत्वमसि महावाक्य इसी उपनिषद् में  वर्णित  है । दहर विद्या  का वर्णन इसी में किया गया है । आत्मा की ४ अवस्थाओं का वर्णन भी प्राप्त होता है ।

केनोपनिषद् -  यह  जैमिनीय शाखा से सम्बद्ध  उपनिषद है । इसका प्रारम्भ वाक्य केनेषितं पतति है । यह ४ खण्डों में विभक्त  है ।  प्रथम के दो खण्डों में ब्रह्म की अनिर्वचनीयता का वर्णन  है । तृतीय एवं चतुर्थ में  उमा-हेमवती आख्यान का वर्णन किया गया है । इसमे कुल मंत्रों की संख्या ३४ है ।  सामवेद  में कुल १६ उपनिषद प्राप्त होते है ।

सामवेदीय-कल्पसूत्र

श्रोतसूत्र-   आर्षेय या मशक, लाट्यायन, द्वाह्ययण,जैमिनीय

गृहसूत्र-  द्वाह्ययण, गोभिल,खादिर, जैमिनीय

धर्मसूत्र- गौतम धर्मसूत्र

शुल्वसूत्र-   उपलब्ध नही

सामवेदीय प्रतिशाख्य ग्रन्थ-  सामप्रतिशाख्य, पुष्पसूत्र, पञ्चविध सूत्र

शिक्षा ग्रन्थ-  नारद शिक्षा



                                                                                                  शिव त्रिपाठी
                                                                                        बुद्धवासरः ०२/०५/२१८
                                                                                                             क्रमशः
 

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